Home लेख ‘महिला सशक्तिकरण’ पर अवसरवादी उपदेश?
लेख - July 14, 2021

‘महिला सशक्तिकरण’ पर अवसरवादी उपदेश?

-निर्मल रानी-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

महिलाओं की हमदर्दी में हमारे देश में सदियों से तरह तरह के ढोंग व नौटंकियां की जाती रही हैं। यहाँ तक कि अनेक देवियों की पूजा कर तथा नवरात्रों के बाद कन्या पूजन कर यह भी जताया जाता है कि केवल सामाजिक ही नहीं बल्कि धार्मिक एतबार से भी हमारा भारतीय समाज महिलाओं के प्रति गहन श्रद्धा व सम्मान रखता है। हमारे देश में महिलाओं के लिये ‘आधी आबादी’ नमक एक पारिभाषिक शब्द प्रयोग में लाया जाता है। इंसाफ तो यही कहता है कि जब महिलाओं को ‘आधी आबादी’ कहकर संबोधित किया ही जाता है और वह भी पुरुष समाज ही इस ‘आधी आबादी’ शब्दावली का संबोधन सबसे अधिक करता है ऐसे में तो क्या संसद क्या विधानसभाएं क्या न्यायपालिका तो क्या कार्य पालिका क्या देश के सरकारी व गैर सरकारी कार्यालय क्या सुरक्षा बल तो क्या उद्योग धंधे गोया देश के सभी काम काजी क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनीधित्व भी आधा यानी पचास प्रतिशत तो होना ही चाहिए? परन्तु पचास प्रतिशत तो दूर अभी तक प्रस्तावित 33 प्रतिशत आरक्षण भी तथाकथित आधी आबादी ‘ को नसीब नहीं हो पा रहा है। और जहाँ तक देवी पूजन व कन्या पूजन की बात है तो उसे देखकर तो हमारे देश को पूरी तरह से बलात्कार व महिला उत्पीड़न से मुक्त देश होना चाहिये। राजनैतिक व सामाजिक रूप से महिलाओं को पूरी तरह सशक्त होना चाहिये। परन्तु यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि महिलाओं के सशक्तिकरण पर हमारे देश में जितना भाषण व उपदेश दिया जाता है वह पूरी तरह निराधार, खोखला व अवसरवादिता पर आधारित है।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में ब्लॉक प्रमुख के ‘तथाकथित चुनाव’ संपन्न हुए। इस चुनाव में महिलाओं के साथ इसी पुरुष समाज के लोगों द्वारा उसकी साड़ी खींचे जाने व उसे अर्ध नग्न किये जाने के चित्र व वीडिओ प्रसारित हुए। एक महिला के ‘चीर हरण ‘ में लगे बाहुबलियों को उस समय न तो किसी देवी की याद आई न ही उस ‘चीर हरण’ में शामिल किसी गुंडे मवाली के जेहन में यह आया कि आखिर यह भी वही महिला है जिसका कभी कन्या पूजन किया गया था? किसी मुश्तण्ड गुंडे ने यह भी नहीं सोचा कि इस महिला जैसी ही उसकी भी माँ-बहनें उसके घरों में बैठी हैं। कल यदि समय का पहिया उल्टा घूम गया और उसके परिवार की महिलाओं के साथ दुर्भाग्यवश इसी तरह का कोई हादसा पेश आया तो वह किस मुंह से ‘महिलाओं पर अत्याचार ‘ की बात या शिकायत करेगा? पिछले दिनों बंगाल में चुनाव संपन्न हुए। बंगाल में देश की एकमात्र महिला मुख्य मंत्री ममता बनर्जी हैं जो तीन बार अपनी सादगी, लोकप्रियता, जुझारूपन व ईमानदारी के चलते मुख्य मंत्री रह चुकी हैं। पूरी दुनिया ने देखा कि महिला सशक्तिकरण के दंभ भरने वालों ने देश की उस एकमात्र महिला मुख्यमंत्री को सत्ता से अपदस्थ करने के लिये क्या क्या कथकण्डे नहीं अपनाए? और तो और जब ममता को सत्ता से हटाने वालों को अपने मुंह की खानी पड़ी तो उसके बाद भी इन महिला विरोधियों ने बंगाल के मतदाताओं को भी तरह तरह के अपशब्दों से संबोधित किया?
केंद्रीय मंत्रिमंडल में कभी एक शक्तिशाली नाम उमा भारती का हुआ करता था। आज वह नाम पूरी तरह से गायब है। क्योंकि उमा भारती की विचारधारा चाहे जो भी हो परन्तु वह अपनी बातों को स्वतंत्र व जोरदार तरीके से रखने वाली महिला हैं। आज उनका राजनैतिक कैरियर लगभग समाप्त हो चुका है? क्योंकि वह अपनी स्पष्टवादिता व स्वतंत्र विचारों की सजा भुगत रही हैं। आज उन्हीं की अपनी पार्टी में कोई नेता ऐसा नहीं जो उमा भर्ती के पक्ष में महिला सशक्तिकरण का परचम उठा कर उन्हें किनारे लगाने वाले नेताओं से यह पूछ सके कि उमा भारती का कुसूर क्या है? मंदिर आंदोलन में अपनी अग्रणी भूमिका निभाते हुए अपनी पार्टी को सत्ता के लिए आत्मनिर्भर बनाने वाली महिला नेता की इस ‘राजनैतिक दुर्गति’ का आखिर कारण क्या है? इसी प्रकार किरण बेदी जिन्हें भारतीय महिलायें एक आदर्श महिला के रूप में देखती हैं, उनकी योग्यता व क्षमता का जब तक प्रयोग करना था किया गया उसके बाद उन्हें भी घर बैठने के लिए मजबूर कर दिया गया। सुमित्रा महाजन भी एक काबिल व सुशील नेत्री थीं,जब येदुरप्पा व श्रीधरन जैसे 80 पार वालों की सेवाएं ली जा सकती हैं तो सुमित्रा महाजन की क्यों नहीं? नए मंत्रिमंडल विस्तार में कथित रूप से कई अपराधियों को शामिल किया जा सकता है तो भ्रष्टाचार के दागों से मुक्त उमा भारती या महाजन को क्यों नहीं? शायद इसी लिए कि यह महिलायें हैं और इन्हें उतने साम-दाम-दण्ड-भेद नहीं आते जितने पुरुषों को आते हैं? आश्चर्य तो यह है कि उनके पक्ष में उन्हीं की पार्टी की वह महिलायें भी आवाज नहीं उठाती जो पद व सत्ता का सुख भोग रही हैं।
वर्तमान दौर में ‘महिला सशक्तीकरण’ की वैसे भी उम्मीद कैसे की जाए जब सत्ता के संरक्षक यह प्रवचन देने लगें कि यदि पत्नी,पति की सेवा न करे तो पति उसे त्याग सकता है? जब महिलाओं से चरण धुलवाने की प्रथा को गर्व पूर्वक आज के दौर में भी अमल में लाया जा रहा हो? जब बिना तलाक पत्नी को त्यागने वालों को जनता अपने सिर पर बिठाने लगे?जब बिन ब्याहे लोग महिलाओं के हित चिंतक होने का स्वांग करने लगें? जब मासूम बच्चियों से बलात्कार दरिन्दिगी यहाँ तक कि सामूहिक बलात्कार के बाद निर्मम तरीके से हत्या किये जाने के बाद भी पीड़िता का धर्म व जाति देखकर समाज उसके पक्षध्विपक्ष में खड़े होने की राय कायम करने लगें? और इन सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह कि इन शर्मनाक कृत्यों में स्वयं महिलायें ही धर्म,जाति या दलगत सोच से प्रेरित होकर पीड़ित महिलाओं के ही विरोध में खड़ी दिखाई देने लगें? लगता है राजनेताओं की कथनी और करनी में अंतर रखने वाले इस देश में हम और आप फिलहाल देश के भाग्य विधाताओं और स्वयं को महिला हितैषी बताने वालों से ‘महिला सशक्तिकरण ‘ पर अवसरवादी उपदेश ही सुनते रहेंगे?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

मुकेश पटेल ऑडिटोरियम में मिथिबाई क्षितिज का कोंटिन्जेंट लीडर्स ghar 2024

मुंबई l( अशोका एक्सप्रेस) मुकेश पटेल ऑडिटोरियम में अपने बहुप्रतीक्षित कोंटिन्जेंट लीडर्स म…