पेगासस जासूसी कांड को गंभीरता से ले सरकार
-सनत कुमार जैन-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
वाशिंगटन पोस्ट की खबर के बाद भारत सहित सारी दुनिया के देशों में खलवली मची है। पेगासस स्पाईवेयर साफ्टवेयर के माध्यम से डिजिटली जासूसी का खुलासा होने के बाद भारत की राजनीति में नया तूफान आ गया है। इस तूफान में सबसे ज्यादा नुकसान भारत सरकार और भाजपा को हो सकता है। सरकार इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रही है। पूर्व की तरह विपक्ष एवं देश की सुरक्षा को लेकर गोपनीयता की आड़ लेकर सरकार बचने का प्रयास कर रही है। इस स्थिति में सरकार को राजनैतिक स्तर पर बड़ा नुकसान हो सकता है। पेगासस कम्पनी का कहना है कि, वह जासूसी का साफ्टवेयर केवल सरकारों को ही उपलब्ध कराती है। दुनिया के कई देशों ने उक्त साफ्टवेयर सुरक्षा को ध्यान में रखकर जासूसी के लिए खरीदा है। कम्पनी के दावे को सही मानें तो भारत में जासूसी का यह साफ्टवेयर सरकार ने ही खरीदा है। जासूसी की लिस्ट में जो नाम सामने आ रहे हैं। उसमें केंद्रीय मंत्री, सुप्रीमकोर्ट के जज, राजनेता, बडे -बडे नौकरशाहों के नाम होने से यह मामला तूल पकड़ रहा है।
सरकारें पहले भी जासूसी के लिए फोन टेपिंग का कार्य टेलीग्राफ एक्ट के तहत उच्चस्तरीय अनुमति के बाद कानूनी तौर पर कराती थी। उस समय लेंड लाइन फोन ही टेप होते थे। पिछले 20 वर्षों में डिजिटल तकनीक एवं संचार माध्यमों का जो नवीनतम स्वरुप सामने आया है। उसमें इंटरनेट की सहायता से प्रत्येक कम्पयूटर एवं मोबाइल फोन टेपिंग एवं जासूसी के दायरे में आ गये हैं। कम्पयूटर, मोबाइल के माध्यम से फोटो, आने-जाने की लोकेशन, फोन में रखा डाटा एवं साफ्टवेयर की सहायता से डाटा पढ़ा-देखा भी जा सकता है। बातचीत को टेप करने का मामला अब बहुत आसान है। इसे कोई भी व्यक्ति आसानी से टेलीफोन की बातों को टेप कर सकता है।
इजराइल की कम्पनी पेगासस द्वारा बनाए गए साफ्टवेयर का उपयोग सरकारों द्वारा जासूसी के लिए किया जाता है। भारत सरकार द्वारा जासूसी के लिए उक्त साफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है या नहीं इसका सरकार को खुलासा करना चाहिए। सरकार ने यदि नेताओं, जजों, नौकरशाहों, संपादकों एवं पत्रकारों की जासूसी नहीं कराई है, तो सरकार को अपना पक्ष रखना चाहिए। इजराइली कम्पनी के साफ्टवेयर का उपयोग गैरकानूनी तरीके से भारत में किया गया है, तो उसकी जाँच भारत सरकार को कराने का निर्णय लेना चाहिए। स्पाई साफ्टवेयर के माध्यम से सत्ता पक्ष, विपक्ष के नेताओं, जजों, नौकरशाहों, मानव अधिकार संरक्षण के सक्रिय कार्यकर्ताओं के फोन की बड़े पैमाने पर जासूसी की गई है। भीमा कोरागांव मामले में जिन लोगों को राष्ट्रद्रोह के अपराध में बंदी बनाया गया था। उनके कंप्यूटर में स्पाई साफ्टवेयर के माध्यम से बाहर से डेटा भेजा गया। आरोपियों का कहना था कि पेगासस में मिले डाटा से उनका कोई संबंध नहीं था।
साफ्टवेयर की सहायता से मोबाइल फोन, सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म जिसमें व्हाट्सप्प, इंस्टाग्राम, फेसबुक इत्यादि के माध्यम से की गई बातचीत डेटा, फोटो , लोकेशन के माध्यम से जासूसी की गई है। इससे निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लोकतांत्रिक अधिकारों को खत्म करने का काम किया गया है। भारत सरकार ने यदि जासूसी नहीं कराई है, तो यह जासूसी किसके इशारे पर की गई है। इसकी जाँच भारत सरकार को कराना चाहिए ताकि नागरिकों का विश्वास बना रहे। चीन और पाकिस्तान जैसे देश भी भारत को अस्थिर करने के लिए इस तरह की जासूसी करा सकते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी व्यापारिक लाभ के लिए जासूसी कराती रही हैं। जासूसी की निष्पक्ष जाँच एजेन्सी अथवा सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में कराने का निर्णय स्वंय सरकार ले। सांसदों की ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी को मामला सौंपकर जासूसी कांड के दूध और पानी को पृथक करने का काम प्रधानमंत्री करें। प्रथम दृष्टया सरकार और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने विपक्ष के ऊपर टीकरा फोड़कर मामले से पल्ला झाड़ने की कोशिश की है। उससे सरकार के लिए भविष्य में बड़ी परेशानियॉ पैदा होंगी। बृहद पैमाने पर की गई जासूसी के कारण नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित होने से आम धारणा बन रही है कि देश से लोकतांत्रिक व्यवस्था खत्म हो रही है। सरकार अब तानाशाही की ओर बढ़ गयी है। पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे तथा जाँच एजेंसियों की मनमानी से सरकार की विश्वश्सनीयता भी कम हो रही है। ताजा जानकारी के अनुसार 300 से ज्यादा लोगों की जासूसी कराई गई है, उसमें राहुल गांधी, प्रशांत किशोर, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, स्मृति ईरानी और अश्विनी वैष्णव, ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, प्रवीण तोगड़िया, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के नाम प्रमुख हैं।
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