महंगाई की मार से देशभर में त्राहिमाम
–सुखदेव सिंह-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
पेट्रोल, डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों की वजह से महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच चुकी है। हालात ऐसे नाजुक बनते जा रहे हैं कि आम जनमानस का घरेलू बजट तक चरमरा गया है। पेट्रोल, डीजल पर जीएसटी घटाने की बात जयराम सरकार जरूर करती है, मगर आखिर वह दिन कब आएगा जब जनता को महंगाई से थोड़ी राहत मिलेगी। आज दाल, सब्जी, फल, सरसों तेल, दही, मीट, मुर्गा, मछली, रेत-बजरी, सीमेंट, ईंट, सस्ते खाद्यान्न तक के दाम कई गुणा बढ़ा दिए गए हैं। सरकारों का फोकस केवल मात्र कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लड़ने पर है। महंगाई की मार से त्रस्त होकर लोग बेशक मरते रहें, सरकारों का इससे कोई सरोकार नजर नहीं आता है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट यह साबित करती है कि हिमाचल प्रदेश में महंगाई की दर कई गुना बढ़ चुकी है। कोरोना वायरस के चलते अधिकतर लोगों के कामकाज पर विपरीत असर पड़ा है। सरकारी कर्मचारियों को छोड़कर निजी क्षेत्रों और घरेलू, उद्योग धंधों से जुड़े लोगों का कामकाज प्रभावित होकर रह गया है।
निजी कंपनियों में काम करने वाले कामगारों को घर वापस भेज दिया गया है। कोरोना वायरस की चेन तोड़ने के लिए बाजारों पर ताला जड़ना पड़ा है। विदेशों में रोजी-रोटी के लिए संघर्ष करके अपने परिवारों का पेट पालने वालों को वापस भारत भेज दिया गया है। सब्जियों, फलों के दाम कई गुणा बढ़ाकर बाजारों में बेचा जा रहा है, मगर स्थानीय प्रशासन के पास इसकी जांच किए जाने का समय तक नहीं है। जिला प्रशासन ने मुर्गे का मीट 180 रुपए प्रति किलो निर्धारित कर रखा है, मगर जिला प्रशासन के नियमों को ठेंगा दिखाकर मुर्गा ढाई सौ रुपए किलो बेचा जा रहा है। उचित मूल्य की दुकानों में मिलने वाले खाद्यान्न पर केंद्र सरकार सबसिडी देती थी। कुल मिलाकर कोरोना वायरस के दौर में लूट-खसूट चल रही है। पिछले एक वर्ष से केंद्र सरकार ने इस सबसिडी को बंद कर दिया है, जिसका खामियाजा हिमाचल प्रदेश के अठारह लाख राशन कार्ड धारकों को भुगतना पड़ा है। प्रदेश सरकार इस सबसिडी को यथावत रखने की गुहार केंद्र सरकार से लगा चुकी है। बावजूद इसके केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकार की इस मांग पर कोई दिलचस्पी लेना गवारा नहीं समझा है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सरकार केवल अपने बलबूते पर प्रदेश की जनता को सस्ता खाद्यान मुहैया करवा रही है। उचित मूल्य की दुकानों में मिलने वाले खाद्यान्न के दामों और परचून की दुकानों के दामों में कोई ज्यादा अंतर नहीं रह गया है। दालों, सरसों तेल और रिफाइंड तेल के दाम कई गुणा बढ़ चुके हैं। जनता को 35 रुपए में मिलने वाली दाल का पैकेट अब 70 और तेल 82 की बजाय 160 रुपए किलो बेचा जा रहा है।
आए दिन खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों और उसकी गुणवत्ता बढ़ाने की ख़बरें मीडिया की सुर्खियों में रहती हैं। प्रदेश के उपभोक्ताओं के साथ भिखारियों की तरह सलूक किए जाने की कोशिश चल रही है। सरकार ने गृहणी सुविधा योजना के तहत महिलाओं को मुफ्त में गैस सिलेंडर मुहैया करवाने की एक सराहनीय पहल शुरू की थी। हिमाचल प्रदेश में 23 लाख गैस उपभोक्ता हैं, जिनमें तीन लाख गृहणी सुविधा योजना के तहत मिले कनेक्शन भी शामिल हैं। गैस सिलेंडर के लगातार बढ़ते दामों की वजह से ऐसी गरीब महिलाएं अपने आपको ठगा सा महसूस कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश में गैस सिलेंडर 931 रुपए में बेचे जाने की वजह से अधिकतर गरीब महिलाओं ने पुनः चूल्हा जलाना शुरू कर दिया है। गैस सिलेंडर पर मिलने वाली सबसिडी में भी कई गुणा कटौती किया जाना जनता में रोष पैदा कर रहा है। गैस सिलेंडर करीब सात सौ रुपए में भरे जाने पर उपभोक्ताओं को ढाई सौ रुपए तक बैंक खातों में सबसिडी के मिलते रहे हैं। आज गैस सिलेंडर 931 रुपए में बेचा जा रहा है तो उपभोक्ताओं को सबसिडी के 31 रुपए देकर मजाक बनाने की कोशिश की जा रही है। अगर इस तरह गैस सिलेंडर बेतहाशा दामों में बिकता रहा तो गृहणी सुविधा योजना लागू किए जाने का क्या औचित्य बनता है? कोरोना वायरस के दौर में आज पेट्रोल, डीजल, गैस एवं अन्य वस्तुओं के दाम घटाने की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में बनने वाली बिजली दिल्ली में सस्ती और स्वयं अपने प्रदेश की जनता को महंगे दामों में बेचने का भी मलाल है। बिजली बिल इस कदर कई गुणा बढ़ा दिए गए हैं जिसकी वजह से आम जनमानस त्रस्त है। विद्युत विभाग में अतिरिक्त बिजली बिलों को लेकर जल्द ही कोई स्कैंडल उजागर होने की आशंका है। उपभोक्ताओं को कई गुणा बिजली बिल अनुमान से थमाए जाने का दौर चल रहा है। इसी तरह बढ़ते सीमेंट दामों पर अंकुश लगाने में कोई भी सरकार अभी तक सफल नहीं हो पाई है।
सीमेंट प्लांटों की धूल प्रदेश की जनता को नसीब हो रही है और सीमेंट सस्ते दामों में अन्य राज्यों को मिल रहा है। पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों की वजह से बसों का किराया पचास फीसदी बढ़ाकर जनता के साथ अन्याय किया गया है। कोरोना वायरस काल में बसों में पचास फीसदी तक ही सवारियां भरने का सरकारी फरमान रहा है। नतीजतन अधिकतर लोगों ने अपने दोपहिया वाहन खरीदना बेहतर समझा है। हालात इस कदर बन चुके हैं कि बसों में सवारियां कम ही देखने को मिल रही हैं। बसों के परिचालक सवारियों से कई गुणा किराया वसूल करते जा रहे हैं। नतीजतन जनता अपने निजी वाहनों से आवाजाही करना अब कहीं अधिक सस्ता समझती है। हिमाचल पथ परिवहन निगम के चालक-परिचालक महामारी के दौर में अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं जिसका नुकसान सरकार को उठाना पड़ा है। कोरोना वायरस के शुरुआती दौर में आंध्र प्रदेश में भी ठीक इसी तरह का संघर्ष ट्रांसपोर्टरों ने सरकार के खिलाफ किया था। सरकार ने आखिर सभी चालकों-परिचालकों को बाहर का रास्ता दिखाकर उनकी जगह नई भर्ती किए जाने का ऐलान किया था। नई भर्ती किए जाने से डरे सरकारी चालकों-परिचालकों ने आखिर सरकार के फैसले पर सहमति जताई थी। देश भर में महंगाई को रोकने की ओर कोई भी सरकार ध्यान नहीं दे रही है।
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