क्या सुप्रीम कोर्ट पेगासस जासूसी की जांच का मार्ग खोलेगा?
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पेगासस मामले पर कड़ा रुख अपनाने के बाद लगता है कि इसकी जांच का मार्ग प्रशस्त हो रहा है और केन्द्र सरकार मुश्किल में फंसती नजर आ रही है। हालांकि यह कहना कठिन है कि जांच कितनी निष्पक्ष और सही होगी। केन्द्र सरकार की ओर से इसकी जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन का वादा किया गया है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पत्रकार एन राम, शशि कुमार, परंजॉय गुहा ठाकुरता, आईआईएम के प्रोफेसर जगदीप चोपकर, टीएमसी सांसद जन ब्रिटास आदि के द्वारा दाखिल याचिकाओं की एक साथ सुनवाई कर रही शीर्ष कोर्ट ने मंगलवार को केन्द्र सरकार को नोटिस जारी कर 10 दिनों का समय दिया है कि वह ट्रिब्यूनल का गठन करे। इस पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ की सुनवाई में केन्द्र सरकार के वकील तुषार मेहता ने पहले ही स्पष्ट किया था कि सरकार कुछ भी छिपाना नहीं चाहती है। इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत एवं न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस शामिल हैं। सोमवार को भी इस मामले पर सुनवाई हुई थी जिसमें सरकारी वकील ने कहा था कि इसकी जांच से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है।
याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने स्पष्ट कर दिया था कि वे ऐसी कोई जानकारी नहीं चाहते जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचे। उनकी यह भी दलील थी कि जब पेगासस द्वारा जासूसी की कई देशों में जांच चल रही है तो भारत में कराने में क्या दिक्कत है। मंगलवार की सुनवाई में सबसे बड़ी अदालत ने अदालत की निगरानी में स्वतंत्र जांच हेतु जनहित याचिकाओं पर केन्द्र को नोटिस जारी किया। वैसे अपनी दलील में सरकारी वकील का कहना था कि सुरक्षा बलों एवं सेना द्वारा राष्ट्रविरोधी और आतंकवादियों गतिविधियों की जांच के सिलसिले में कई तरह के सॉफ्टवेयरों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यह नहीं बताया जा सकता कि सुरक्षा उद्देश्यों के चलते फोन को किस सॉफ्टवेयर से इंटरसेप्ट किया जाता है। मेहता के अनुसार कोई भी सरकार इस बात का खुलासा नहीं कर सकती क्योंकि इससे आतंकी संगठन या नेटवर्क अपने सिस्टम को मॉडिफाई कर सकते हैं। अलबत्ता सरकारी वकील ने कहा कि केन्द्र सरकार निगरानी के बाबत सभी तथ्यों को एक विशेषज्ञ तकनीकी समिति के सामने रखने के लिए तैयार है और इस संबंध में कोर्ट को भी वह रिपोर्ट दे सकती है।
इस पर पीठ ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले के सभी पहलुओं को देखने के लिए विशेषज्ञों की समिति बनाने के प्रस्ताव का परीक्षण करेगी। केन्द्र सरकार को इस नोटिस का 10 दिनों में जवाब देने को कहा गया। पीठ ने यह भी पूछा कि क्या सरकार के पास इस अदालत को बताने के लिए विस्तृत हलफनामा तैयार है, इस पर एडवोकेट मेहता का कहना था कि सोमवार को जो दो पृष्ठीय हलफनामा दिया गया है, वह पर्याप्त रूप से सभी बातों का जवाब देता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे यह नहीं कहते कि सरकार के सामने खुलासा नहीं हो सकता। उनका कहना है कि इस जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
उल्लेखनीय है कि करीब दो माह पहले इजराइली कंपनी द्वारा विकसित पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये दुनिया के अनेक देशों के महत्वपूर्ण राजनेताओं, पत्रकारों, सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं आदि की संबंधित सरकारों द्वारा जासूसी कराये जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया था। 11 देशों के तकरीबन 150 खोजी पत्रकारों ने सामूहिक जांच में पाया था कि जिन देशों में जासूसी की गई, उनमें भारत भी शामिल था। यहां कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से लेकर केन्द्र सरकार के कुछ मंत्री, एक न्यायाधीश, अनेक पत्रकारों और कई कार्यकर्ताओं की पेगासस के माध्यम से जासूसी हुई थी। इस कांड के पर्दाफाश होने पर भारत सरकार पर भी आरोप लगा था कि उसके माध्यम से जासूसी होनी संभव है। हालांकि सरकार ने इससे नकार दिया था। इसे लेकर संसद का पूरा मानसून सत्र ही धुल गया था। दोनों सदन करीब एक माह ठप रहे। विपक्ष की मांग थी कि सरकार इस पर चर्चा कराये, जबकि सत्ता पक्ष इससे मना करता रहा। सरकार ने इस बात का भी खुलासा नहीं किया कि क्या भारत सरकार की ओर से इस उपकरण की खरीदी हुई है। सरकार द्वारा इस सवाल के टालने के कारण उस पर शक पुख्ता होता चला गया।
विशेषज्ञ समिति द्वारा जांच के ऐलान से इस मामले की परतें खुलने की संभावना बनती नजर आ रही हैं। हालांकि यह देखना बकाया है कि 10 दिनों के बाद सरकार की ओर से गठित समिति की जो जानकारी आती है उस पर शीर्ष कोर्ट क्या रवैया अपनाती है। इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि समिति में ऐसे लोगों को रखा जायेगा जो सरकार के समर्थक होंगे। इसकी निष्पक्ष एवं समुचित जांच तो कोर्ट की निगरानी में गठित किसी समिति या विशेष कार्य दल द्वारा ही संभव है। देखना है कि वैसी जांच हो सकेगी या नहीं।
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