मोदी की चिंता
-सिद्वार्थ शंकर-
-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13वें ब्रिक्स सम्मेलन में संसाधनों के साझा इस्तेमाल पर जोर देते हुए कहा कि आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लडने की जरूरत है। अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने के बाद भारत की आतंकवाद को लेकर चिंता बेमानी नहीं है। तालिबान को पालने में पाकिस्तान और चीन जिस तरह से गंभीरता दिखा रहे हैं, उसे देखते हुए वैश्विक समुदाय को आगे आना होगा। यह इसलिए क्योंकि ढाई दशक पहले जब तालिबान ने सत्ता पर कब्जा किया था तब भी उसे पाकिस्तान ने समर्थन दिया था। आज भी पाकिस्तान का तालिबान को खुला समर्थन है, लेकिन ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि अबकी बार चीन, रूस, बांग्लादेश जैसे कई और मुल्क भी तालिबान को समर्थन देने से परहेज नहीं कर रहे।
अफगानिस्तान के हालात पर ब्रिक्स में भारत ने जो चिंताएं रखी हैं, उनका सरोकार सभी देशों से है। ज्यादातर देश किसी न किसी रूप में आतंकवाद और मुल्कों के टकराव से होने वाली अशांति के खतरों से जूझ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कहा है कि अफगानिस्तान के हालात न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी गंभीर चुनौती बन गए हैं। भारत ने एक फिर दोहराया है कि अब किसी भी तरह से दुनिया से आतंकवाद का खात्मा करना होगा। अफगानिस्तान के घटनाक्रम से सबसे ज्यादा जो देश प्रभावित हुए हैं उनमें भारत भी है। भारत ने जिस सबसे गंभीर मुद्दे पर वैश्विक समुदाय का ध्यान खींचा है वह आतंकी संगठनों को बढ़ावा देने वाले देशों को लेकर है। सवाल है कि इन देशों से निपटने की रणनीति क्या बने? अफगानिस्तान के हालात बता रहे हैं कि आतंकवाद से निपटने में अगर वैश्विक समुदाय ने इच्छाशक्ति नहीं दिखाई तो भविष्य में हालात और बदतर होते चले जाएंगे। दूसरे और देश भी आतंकवाद की जद में आते जाएंगे। गंभीर होते जा रहे हालात में भारत ने यह भी दोहराया है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों पर कार्रवाई के लिए बनाए गए वित्तीय कार्रवाई कार्यबल को और सशक्त बनाने की जरूरत है। गौरतलब है कि इस बल ने पाकिस्तान को निगरानी सूची में डाल रखा है। यह तो पूरी दुनिया जान रही है कि दूसरे देशों की तरह भारत भी लंबे समय से सीमापार आतंकवाद की मार झेल रहा है। अब तक अमेरिका के साथ भारत भी यही कहता रहा है कि पाकिस्तान आतंकियों के प्रशिक्षण का वैश्विक केंद्र है।
अनुभव भी यही बता रहा है कि अफगनिस्तान में तालिबान को सत्ता तक पहुंचाने में पाकिस्तान की भूमिका भी कम बड़ी नहीं रही है। कहा जाता है कि उसने तालिबान के लिए लड़ाके तैयार किए और सैन्य मदद भी दी। ढाई दशक पहले जब तालिबान ने सत्ता पर कब्जा किया था तब भी उसे पाकिस्तान ने समर्थन दिया था। आज भी पाकिस्तान का तालिबान को खुला समर्थन है। लेकिन ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि अबकी बार चीन, रूस, बांग्लादेश जैसे कई और मुल्क भी तालिबान को समर्थन देने से परहेज नहीं कर रहे। ऐसे में तालिबान की ताकत को बढने से रोक पाना इतना आसान नहीं है। जहां तक सवाल है भारत का, तो तालिबान वही करेगा जो पाकिस्तान चाहेगा। जैश और लश्कर जैसे संगठन भारत के खिलाफ गतिविधियां अब तेज कर सकते हैं। तालिबान ने बिना खून-खराबे के जिस आसानी से अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया, उससे अमेरिका भी कम सकते में नहीं होगा। कुल मिला कर हालात इतने जटिल हो गए हैं कि आतंकी देशों पर लगाम लगाने और उन्हें साधने के लिए अब कूटनीतिक उपायों के आसार बढ़ चले हैं। भारत और अमेरिका जैसे देशों के प्रयास भी इसी रुझान का संकेत दे रहे हैं।
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