Home लेख विपक्ष फिर बिखरा
लेख - August 8, 2022

विपक्ष फिर बिखरा

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी अशोक एक्सप्रेस :-

पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ देश के अगले उपराष्ट्रपति होंगे। शनिवार को हुए चुनाव में उन्होंने विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को मात दी। लोकसभा और राज्यसभा के कुल 725 सांसदों ने वोट डाला था। इनमें 15 वोट रद्द कर दिए गए। कुल 710 वैध वोटों में 528 वोट जगदीप धनखड़ को मिले, वहीं अल्वा के पक्ष में 182 वोट पड़े। इस तरह से धनखड़ ने चुनाव जीत लिया। नतीजे आते ही धनखड़ की इस जीत से ज्यादा मार्गरेट अल्वा की हार के चर्चे होने लगे। ठीक वैसे ही जैसे राष्ट्रपति के बाद विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के चर्चे सुनने को मिले थे। दरअसल, मार्गरेट अल्वा को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया था। अब ऐसा वक्त आ गया है जब कई क्षेत्रीय दल कांग्रेस का नेतृत्व पसंद नहीं करते हैं। इन दलों का मानना है कि कांग्रेस डूबता जहाज है और जो भी इसके साथ आएगा वो भी डूब जाएगा। यही कारण है कि क्षेत्रीय दल कांग्रेस से दूरी बनाने लगे हैं। राष्ट्रपति और फिर उपराष्ट्रपति चुनाव में भी यही देखने को मिला। विपक्ष पूरी तरह से बिखरा नजर आया। उपराष्ट्रपति चुनाव में तो भाजपा की धुर विरोधी टीएमसी तक ने अल्वा का साथ नहीं दिया। राष्ट्रपति चुनाव की तरह ही उपराष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्ष बिखरा नजर आया। बल्कि पहले से ज्यादा बिखराव उपराष्ट्रपति चुनाव में दिखा। इस बार तो भारतीय जनता पार्टी की धुर विरोधी तृणमूल कांग्रेस तक ने विपक्ष की उम्मीदवार का साथ नहीं दिया। चुनाव हारने के बाद अल्वा के बयान में भी यही दर्द झलका। भाजपा ने बड़े आराम से दोनों चुनाव में विपक्ष को एकजुट होने से रोक दिया। आमतौर पर सत्ता से बाहर रहने के दौरान विपक्ष का नेतृत्व कांग्रेस ही करते आई है। हर बार उसे क्षेत्रीय दलों का साथ मिलता रहा है, लेकिन इस बार हालात अलग हैं। अब कांग्रेस के नेतृत्व पर ही क्षेत्रीय दल सवाल उठाने लगे हैं। इसके पीछे कारण भी है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस अब नेतृत्व नहीं कर पा रही है। इन दलों का ये भी कहना है कि अगर वह कांग्रेस के साथ आते हैं तो इसका उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। यही कारण है कि तृणमूल कांग्रेस, सपा, टीआरएस, आम आदमी पार्टी समेत तमाम दल अलग मोर्चा ही बनाने में जुटे हैं। अल्वा की हार के बाद तीसरे मोर्चे के गठन की चर्चा और तेज हो गई है। भाजपा के फायदे की बात करें तो उसने धनखड़ के बहाने नाराज किसानों को भी साध लिया हैै। जगदीप धनखड़ राजस्थान के जाट परिवार से आते हैं। उनका पारिवारिक पेशा कृषि रहा है। मतलब एक तरह से वह किसान परिवार के हुए। पिछले दो साल में भाजपा को सबसे ज्यादा मुश्किल किसान और जाट समुदाय के लोगों से ही हुई है। ये सब हुआ कृषि बिल के खिलाफ खड़े हुए किसान आंदोलन के चलते। ऊपर से राज्यपाल सत्यपाल मलिक केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ लगातार मुखर हैं। मलिक भी जाट समुदाय से ही आते हैं। ऐसे में अब भाजपा को कई तरह से फायदे मिलेंगे। किसान आंदोलन के चलते पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, राजस्थान में रहने वाले जाट समुदाय के लोग भाजपा सरकार के खिलाफ हो गए थे। अगले साल राजस्थान, मध्य प्रदेश और फिर 2024 में हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं। इनमें से राजस्थान, हरियाणा में जाट समुदाय के वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है। इसके अलावा दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब में भी जाट वोटर्स की संख्या काफी अधिक हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में अगर ये जाट वोटर्स साथ आ गए तो भाजपा की जीत की राह आसान हो सकती है। धनखड़ किसान परिवार से आते हैं। ऐसे में उनके उपराष्ट्रपति बनने से किसानों में भी भाजपा के प्रति जो नाराजगी है वो दूर हो सकती है। इसके अलावा धनखड़ ने अपने कॅरियर की शुरुआत की वकालत से की है। देशभर में 10 लाख से ज्यादा लोग वकालत के पेशे में हैं। ऐसे में भाजपा को वकीलों का भी साथ मिल सकता है। धनखड़ को जब उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम भाजपा नेताओं ने उन्हें किसान पुत्र कहकर ही बुलाया था। मेघालय के राज्यपाल भी जाट समुदाय से आते हैं। वह केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर होकर इन दिनों बोल रहे हैं। भाजपा के कुछ नेताओं का दबी जुबां ये भी आरोप था कि मलिक जाट समुदाय और किसानों को भड़का रहे हैं। ऐसे में धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने से मलिक को भी भाजपा जवाब दे सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Check Also

केदारनाथ धाम के कपाट 10 मई को खुलेंगे

उखीमठ, 08 मार्च (ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस)। उत्तराखंड में हिमालय की कंदराओं में स्थित 11वें…