उच्च शिक्षा में सुधार कैसे हो?
-डा. वरिंदर भाटिया-
-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-
उच्च शिक्षा की बदहाल सूरत को लेकर देश का बिहार राज्य ख़बरों में है। ताजातरीन तथ्य बताते हैं कि बिहार में चल रही 14 में से 8 यूनिवर्सिटीज और 591 में से 427 कॉलेजों को नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रीडिटेशन काउंसिल (नैक) की मान्यता तक नहीं है। अनेक विश्वविद्यालय मनमानी पर उतारू हैं। बीआर, बिहार यूनिवर्सिटी मुजफ्फरपुर और जेपी यूनिवर्सिटी छपरा ने नियम विरुद्ध कई कॉलेजों को संबद्धता दे दी, जबकि उनके पास पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर तक नहीं थे। तिलका मांझी यूनिवर्सिटी में प्री पीएचडी में 354 फेल छात्रों को गलत ढंग से ग्रेस माक्र्स देकर पास कर दिया गया। पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में दो एजेंसियों को नियम तोड़ टेंडर दे दिए। जांच करने पर ऐसे ही हालात देश की अनेक यूनिवर्सिटीज में पाए जा सकते हैं। इसके लिए उच्च शिक्षा सुधारों को पहल पर लिया जाना होगा। दुनिया में 900 से अधिक विश्वविद्यालयों का सबसे बड़ा आधार होने के बावजूद, भारत से केवल 15 उच्च शिक्षा संस्थान शीर्ष 1000 में हैं। यह भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली के लिए एक खतरनाक संकेत है। भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद, छात्रों के मामले में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी है। यद्यपि उच्च शिक्षा का 75 प्रतिशत निजी क्षेत्र में है, सर्वोत्तम संस्थान, जैसे आईआईटी, आईआईएम, एआईआईएमएस व एनएलएस, सभी सरकार द्वारा स्थापित किए गए हैं।
आज भी देश के कई कॉलेज और विश्वविद्यालयों में योग्य शिक्षक नाम मात्र के हैं। उनके स्थान पर आज भी अप्रशिक्षित या अस्थाई शिक्षकों की सिर्फ और सिर्फ पैसे बचाने के फेर में अल्प वेतन में सेवाएं ली जा रही हैं। यह उच्च शिक्षा के लिए मीठा जहर है। इसके लिए राज्य सरकारों को सक्षम स्तर पर निरीक्षण करवाकर खामियां दूर की जानी चाहिए। उच्च शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए राज्य सरकारों को शिक्षकों की नियुक्ति पर खास ध्यान देना होगा। शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण है। ज्ञानवान योग्य शिक्षकों की नियुक्ति और सेवा बनाए रखना महत्वपूर्ण है। ऐसे शिक्षकों को छात्रों के लिए रोल मॉडल बनाने के रूप में पेश करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही उच्च शिक्षण संस्थाओं में मूल्यांकन सुधार की भी आवश्यकता है। निश्चित रूप से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता वर्तमान की प्रमुख समस्या है। यह गुणवत्ता मुख्यत: तीन स्तंभों पर आधारित है। बुनियादी ढांचा, कुशल फैकल्टी और नवाचार प्रक्रिया। इसको बनाये रखने के लिए सरकारी स्तर पर भी उच्च शिक्षण संस्थाओं को समय-समय पर दिशा निर्देश देकर उनकी प्रभावी मॉनिटरिंग करनी चाहिए, ताकि युवा वर्ग को समय पर रोजगार और नौकरी के अवसर मिल सकें। वर्तमान दौर में शिक्षा को संकुचित अर्थ में सरकारी सेवाओं में जाने का साधन माना जा रहा है, जबकि शिक्षा का व्यापक अर्थ मानव का सर्वांगीण विकास है। कभी नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों के लिए चर्चित रहे भारत में आज उच्च शिक्षा की गुणवत्ता क्यों सवालों के घेरे में है। राज्य सरकारों को उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर काम करने की आवश्यकता है। भारत गांवों का देश है।
इसलिए सरकार को शिक्षा की गुणवत्ता के सुधार के लिए उनको गांवों से शुरुआत करनी चाहिए। अकादमिक नेतृत्व में व्यक्तिवादी लक्षण भी होते हैं जबकि अकादमिक नेतृत्व सहयोगी और परिवर्तनकारी कौशल की मांग करता है। शैक्षणिक उत्कृष्टता शिक्षण, अनुसंधान और अकादमिक प्रशासन में एकीकृत कौशल की मांग करती है। लेकिन विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति/संस्थापक और उनका समर्थन करने वाले मानव संसाधन नेताओं में इस क्षमता का अभाव है। उच्च शिक्षा में चयन के लिए साक्षात्कार अक्सर औपचारिक होते हैं। वरिष्ठ पदों के लिए केवल 30 मिनट का समय केवल उम्मीदवार के पिछले अनुभव पर ध्यान केंद्रित करता है जिसमें उनके अकादमिक नेतृत्व गुणों का आकलन करने के लिए कोई प्रमुख प्रश्न नहीं होता है। इसे सुधार लिया जाना चाहिए। अधिकांश उच्च शिक्षा संस्थानों में उच्च शिक्षा प्रशासन का काम हौसला तोडऩे वाला भी होता है, क्योंकि वे भागीदारी, जवाबदेही, पारदर्शिता, आम सहमति और समावेश जैसी विशेषताओं की उपेक्षा करते हैं।
भारतीय शिक्षा का प्रबंधन अति-केंद्रीकरण, नौकरशाही संरचनाओं और जवाबदेही की कमी, पारदर्शिता और व्यावसायिकता की चुनौतियों का सामना करता है। उच्च शिक्षा प्रशासन अपने मामलों में कोई राजनीतिक प्रभाव या हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं। प्रमुख राजनीतिक नेता अब विश्वविद्यालयों के शासी निकायों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। क्या इसे ठीक किया जा सकता है? दुर्भाग्य से निजी तौर पर संचालित अधिकांश उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रवर्तक लोगों के बजाय भवनों, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में निवेश करते हैं। उन्हें इस बात का जऱा भी एहसास नहीं है कि विद्यार्थी प्रेरणा देने वाले शिक्षकों से सीखते हैं न कि इमारतों से। उच्च शिक्षा संस्थानों को अकादमिक और प्रशसनिक मामलों में कंप्यूटर और हाई-स्पीड इंटरनेट तकनीक को अपनाना होगा। हमारे शैक्षिक वितरण तंत्र को मानव पूंजी की संपत्ति को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए। राज्य सरकारों को तकनीकी अवसंरचना में अधिक निवेश करना चाहिए जिससे ज्ञान की पहुंच आसान हो सके।
राज्य सरकारों को मानदंड पूरा न करने वाले कॉलेज व विश्वविद्यालयों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। उच्च शिक्षा में शिक्षक का अहम रोल है। हमारे समाज में एक शिक्षक एक उद्यमी और निर्माता होता है। लेकिन किसी भी शिक्षक का प्रदर्शन कक्षा तक सीमित नहीं होना चाहिए। शिक्षण कार्य को व्यापक रूप से सुरक्षित, अच्छी तनख्वाह वाली और जोखिम मुक्त नौकरी माना जाता है। कुछ शिक्षक बदलना नहीं चाहते हैं। जैसे-जैसे वे अनुभवी होते जाते हैं, वे असंवेदनशील हो जाते हैं और छात्रों की प्रकृति और जरूरतों के बारे में भी नहीं सोचते हैं। इसके लिए सभी शिक्षकों को आत्म दर्शन की जरूरत रहेगी। उच्च शिक्षा सुधारों के वृहद एजेंडे के तहत राज्य सरकारों को भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों और शीर्ष अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए। सरकार को बेहतर गुणवत्ता और सहयोगी अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं और शीर्ष संस्थानों के अनुसंधान केंद्रों के बीच संबंध बनाने चाहिए। हमारे विश्वविद्यालयों को छात्रों को सक्षम नागरिक बनाने का प्रयास करना चाहिए। शिक्षा प्रणाली के शीर्ष पर होने के नाते विश्वविद्यालयों को वैश्विक परिप्रेक्ष्य रखने का प्रयास करना चाहिए। उच्च शिक्षा किसी भी राष्ट्र के समग्र विकास का मूलभूत आधार है। नई शिक्षा नीति और नई तकनीक से शिक्षा से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ सकती है। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक इस क्षेत्र में प्रयोग और उपयोग काफी कारगर साबित होगा। उच्च शिक्षा में सुधारों में तेजी लाने के लिए दो चीजें आवश्यक हैं। पहली कॉलेज पाठ्यक्रम को नियमित रूप से अपडेट किया जाए और दूसरा कौशल आधारित शिक्षा पर ध्यान दिया जाए।
पाठ्यक्रम को नियमित रूप से अपडेट करने से विद्यार्थियों को समय के साथ बदलते हुए परिवर्तन का ध्यान रहेगा। राज्य सरकारें खंगालें कि क्या ऐसा किया जा रहा है? अनेक विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रम को कई कई साल अपडेट नहीं करते हैं और छात्र आउटडेटिड ज्ञान पर समय नष्ट कर रहे होते हैं। रोजगारपरक उच्च शिक्षा की बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए। इससे विद्यार्थी अपने भविष्य को लेकर पसोपेश में नहीं होंगे। उच्च शिक्षा के साथ अगर स्थानीय स्तर पर उन्हें रोजगार मिल जाएगा, तो उनका भविष्य सुरक्षित हो जाएगा। वर्तमान में दी जा रही उच्च शिक्षा को विकासोन्मुखी तथा व्यवसायोन्मुखी बनाना होगा, ताकि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता के संवैधानिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिल सके और बेहतरीन उच्च शिक्षा प्राप्त करके छात्र आत्मविश्वास से भरे नागरिक बन सकें।
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