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लेख - April 3, 2023

श्रीअन्न से संवरेगी ग्रामीण अर्थव्यवस्था

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में आयोजित वैश्विक श्रीअन्न सम्मेलन में कहा कि मोटे अनाजों (श्रीअन्न) को बढ़ावा देने का अभियान देश के लगभग ढाई करोड़ सीमांत किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए वरदान है। इस मौके पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि भारत ने श्रीअन्न को वैश्विक स्तर पर भोजन की थाली तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। खास बात यह है कि भारत के मौसम के लिहाज से मोटे अनाज की खेती अत्यधिक अनुकूल है। अधिक बारिश या फिर कम बारिश होने पर भी श्रीअन्न की फसलें अन्य अनाजों की तुलना में कम क्षतिग्रस्त होती हैं। ऐसे में श्रीअन्न को प्रोत्साहन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संबल मिलेगा।

गौरतलब है कि इस वर्ष एक जनवरी 2023 से अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (इंटरेनेशनल मिलेटस ईयर) 2023 की शुरुआत हुई है। भारत सरकार के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है, जिसे वर्ष भर देश के साथ ही वैश्विक स्तर पर उत्साह के साथ मनाने तथा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेट्स की मांग और स्वीकार्यता बढ़ाने के उद्देश्य से, अनेक कदम सुनिश्चित किए गए हैं। पिछले दिनों केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा संसद परिसर में सांसदों के लिए ‘विशेष मोटे अनाज (मिलेट्स) लंच’ आयोजित करके देश-दुनिया में अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 में मिलेट्स को बढ़ावा देने की बड़ी अनूठी पहल की गई है। इस आयोजन में मोटे अनाज बाजरा से बनी खिचड़ी, रागी डोसा, रागी रोटी, ज्वार की रोटी, हल्दी की सब्जी, बाजरा चूरमा सहित कई व्यंजन परोसे गए। इतना ही नहीं जी-20 की अध्यक्षता के बीच जनवरी 2023 से अब तक जी-20 की 28 से अधिक कार्यसमूह बैठकों के तहत श्रीअन्न का प्रचार-प्रसार हुआ है।

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि देश में एक जिला-एक उत्पाद के तहत 19 जिलों को श्रीअन्न के लिए चुना गया है। भारत में श्रीअन्न की उपज और खपत में लगातार वृद्धि हो रही है। इसकी विभिन्न प्रजातियों की खेती 12 राज्यों में होती है। प्रति व्यक्ति खपत पहले दो किलो प्रति माह थी, जो अब बढक़र 14 किलो तक पहुंच गई है। केंद्र सरकार ने कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) को श्रीअन्न के प्रचार-प्रसार की जिम्मेवारी सौंपी है और उसके संसाधन बढ़ाए हैं। एपीडा ने भी दो स्तरों पर काम प्रारंभ कर दिया। उसने ऐसे 30 प्रमुख देशों की सूची बना ली है, जो मोटे अनाज के बड़े आयातक हैं। साथ ही अपने देश के 21 राज्यों में उत्पादन बढ़ाने की कार्ययोजना भी बना ली है। एपीडा ने एक कदम और बढ़ाते हुए श्रीअन्न की खपत और कारोबार को प्रोत्साहित करने के लिए श्रीअन्न ब्रांड का निर्माण किया है। रेडी टू ईट और रेडी टू सर्व के अनुकूल श्रीअन्न पर आधारित सैंपल और स्टार्टअप जुटाए जा रहे हैं, जो ज्वार-बाजरा, रागी एवं अन्य मोटे अनाजों से नूडल्स, बिस्कुट, ब्रेकफास्ट, पास्ता, सीरियल मिक्स, कुकीज, स्नैक्स एवं मिठाइयां आदि बना सकें ताकि विश्व बाजार में निर्यात को बढ़ावा देने में सहूलियत हो सके।

मोटे अनाज की फसलों की सरकारी खरीद को भी प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों को विशेष रियायतें दी गई हैं। इसमें तीन महीने के भीतर इन अनाजों के वितरण की अनिवार्यता को समाप्त कर इसे छह से 10 महीने कर दिया गया है। वस्तुत: मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों का भंडार है। छोटे बच्चों और प्रजजन आयु वर्ग की महिलाओं के पोषण में विशेष लाभप्रद हैं। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटा अनाज वैकल्पिक खाद्य प्रणाली प्रदान करता है। श्रीअन्न केवल भोजन या खेती तक ही सीमित नहीं हैं। भारतीय परंपरा में यह गांवों-गरीबों से जुड़ा है। छोटे किसानों के लिए समृद्धि का द्वार, करोड़ों लोगों के पोषण का आधार व आदिवासियों का सम्मान है। सामान्य भूमि और कम पानी में भी उगाया-उपजाया जा सकता है। यह रसायनमुक्त है। उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। खेती के लिए खाद की जरूरत नहीं पड़ती। जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार है।

इनकी खेती सस्ती और कम चिंता वाली होती है। मोटे अनाजों का भंडारण आसान है और ये लंबे समय तक संग्रहण योग्य बने रहते हैं। विभिन्न दृष्टिकोणों से मोटे अनाज की फसलें किसान हितैषी फसले हैं। ज्ञातव्य है कि देश में कुछ दशक पहले तक सभी लोगों की थाली का एक प्रमुख भाग मोटे अनाज हुआ करते थे। फिर हरित क्रांति और गेहूं-चावल पर हुए व्यापक शोध के बाद गेहूं-चावल का हर तरफ अधिकतम उपयोगी होने लगा। मोटे अनाजों पर ध्यान कम हो गया। स्थिति यह है कि कभी हमारे खाद्यान्न उत्पादन में करीब 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले मोटे अनाज की हिस्सेदारी इस समय 10 प्रतिशत से भी कम हो गई है। निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 के तहत सरकार की यह रणनीति होनी चाहिए कि जिस तरह से पिछले चार-पांच दशकों में अन्य नकदी फसलों को बढ़ावा देने के कदम उठाए गए हैं, उसी तरह के कदम मोटे अनाजों के संदर्भ में भी उठाए जाएं। इनका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी बढ़ाना होगा। देश के कृषि अनुसंधान संस्थानों के द्वारा मोटे अनाजों पर लगातार शोध बढ़ाया जाना होगा। देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से आम आदमी तक गेहूं एवं चावल की तुलना में मोटे अनाज की अधिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मोटे अनाजों की सरकारी खरीद बढ़ाई जानी होगी। साथ ही मोटे अनाजों के निर्यात को अधिक ऊंचाई देने की नई रणनीति भी बनाई जानी होगी।

हम उम्मीद करें कि 18 मार्च को आयोजित खाद्य सुरक्षा एवं पोषक के प्रति जागरूकता के वैश्विक सम्मेलन से जिस तरह श्रीअन्न को वैश्विक स्तर पर प्रचलन में लाने की जो जोरदार कोशिश आगे बढ़ी है, वह कोशिश जी-20 की अध्यक्षता के दौरान जी-20 के विभिन्न 200 से अधिक कार्य समूहों की बैठकों के माध्यम से और प्रभावी रूप से आगे बढ़ेगी। हम उम्मीद करें कि अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष भारत के लिए मोटे अनाज सहित खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा। हमारे प्राचीन पोषक-अनाज को भोजन की थाली में पुन: सम्मानजनक स्थान मिल सकेगा। साथ ही इससे कुपोषण और खाद्य चुनौती का सामना किया जा सकेगा। साथ ही देश के द्वारा इस वर्ष 2023 में श्रीअन्न की अहमियत आर्थिक संसाधन के रूप में विकसित करके श्रीअन्न के निर्यात से अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकेगी। इससे किसानों को भी लाभ होगा।

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