भाजपा का भी परिवारवाद
-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-
भाजपा के जन्मदिवस पर पार्टीजनों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर ‘वंशवाद’ या ‘परिवारवाद’ का मुद्दा उठाया था। उसके मद्देनजर कांग्रेस और कई विपक्षी दलों पर राजनीतिक प्रहार भी किए थे। संयोग था कि उसी दिन पार्टी मुख्यालय में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी के पुत्र अनिल एंटनी को भाजपा की सदस्यता दी गई। एक और कांग्रेसी चेहरा भाजपा में शामिल हुआ। अनिल सनातन ईसाई हैं और केरल में ईसाइयों की आबादी करीब 20 फीसदी है। एके एंटनी केरल के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। हालांकि हिन्दुओं की आबादी करीब 55 फीसदी है, लेकिन केरल के हिन्दूवादी अभी तक भाजपाई या संघी नहीं हो पाए हैं, लिहाजा उस राज्य में भाजपा की स्थिति आज भी नगण्य है। संभव है कि भाजपा अनिल एंटनी को ‘ईसाई नेता’ के तौर पर पेश करे और उस समुदाय की स्वीकृति पाने की कोशिश करे, लेकिन अनिल कोई जनाधार वाले नेता नहीं हैं। उनके राजनीतिक करियर की भी शुरुआत है। ‘ईसाई नेता’ के तौर पर उनकी चुनावी परख अभी होनी है। भाजपा का चुनावी गणित यह भी है कि कुछ अल्पसंख्यक धड़ों को भी पार्टी के साथ जोड़ा जाए। हालांकि आरएसएस लंबे वक़्त से केरल में सक्रिय रहा है, लेकिन वहां के हिन्दुओं को आत्मा के स्तर पर वह न तो जोड़ पाया है और न ही भगवान श्रीराम, कृष्ण और महादेव आदि के प्रति कोई दैवीय आकर्षण, आध्यात्मिक आस्थाएं पैदा कर पाया है। हालांकि केरल के हिन्दूवादी भगवान विष्णु और गणेश के अवतार-भगवानों की आराधना करते हैं।
शानदार समारोह मनाते हैं, लेकिन वोट या तो वाममोर्चे को अथवा कांग्रेस नेतृत्व वाले मोर्चे को ही देते रहे हैं। इसका तार्किक, आध्यात्मिक अथवा वैचारिक जवाब हम नहीं दे पाएंगे। वर्ष 2004 के चुनाव से पहले पीसी थॉमस केरल कांग्रेस से अलग होने वाले समूह के साथ भाजपा-एनडीए से जुड़े थे। उन्होंने वाम और कांग्रेसी मोर्चों के उम्मीदवारों को पराजित कर लोकसभा चुनाव जीता था, लेकिन 2006 में सर्वोच्च अदालत ने उनका चुनाव रद्द कर दिया था, क्योंकि उन्होंने धर्म के आधार पर जनादेश मांगा था। केरल में भाजपा के कुछ विधायक तो चुने गए हैं, लेकिन ऐसा कोई कद्दावर नेता नहीं है, जिसके नेतृत्व में आम चुनाव लड़ा जा सके। बहरहाल मुद्दा परिवारवाद का था। अनिल एंटनी भी इसी जमात का नया चेहरा हैं, बेशक पिता-पुत्र अलग-अलग राजनीतिक दलों में हैं। प्रधानमंत्री मोदी अथवा भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेता ‘वंशवाद’ और ‘परिवारवाद’ की अलग-अलग परिभाषाएं देकर अपने ‘परिवारवाद’ को पेशेवर करार देते रहे हैं, लेकिन विजयराजे सिंधिया, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, वेदप्रकाश गोयल, सीपीएन सिंह, जितेन्द्र प्रसाद, यशवंत सिन्हा, प्रेम कुमार धूमल, अमित शाह, मदनलाल खुराना, अखिलेश कुमार सिंह, साहिब सिंह वर्मा आदि भाजपा और अन्य नेताओं की लंबी सूची है, जिनके पुत्र-पुत्री आज भाजपा के ख्यात नेता-सांसद-विधायक हैं। यह परिवारवाद नहीं है, तो क्या है? बेशक कांग्रेस और गांधी परिवार वाली स्थिति नहीं है। इन नेताओं का एकाधिकार या वर्चस्व नहीं है, लेकिन हकीकत यह है कि बच्चों को राजनीति में पांव जमाने का मौका पिता के जरिए ही मिला। यदि यह परिवारवाद नहीं होता, तो आम आदमी की तरह इन चेहरों को भी धक्के खाने पड़ते।
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