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लेख - February 6, 2023

6 करोड़ साल पुरानी शालिग्राम शिलाओं से भगवान श्रीराम व माँ जानकी की मुर्ति बनाई जायेगी

-विनोद ताकियावाला-

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

धन्य-धन्य व वह घरा जहाँ पतित पावनी गंगा युग युगांतरों से र्निमल-निश्चल निरंतर-र्निविध्न बह रही है। तभी तो भारत भुमि को अनेकों ऋषि मुनियों ने अपनी कर्म भुमि के रूप में स्वीकार करते हुए अपनी तपो भूमि बनाया है। चाहे वह राम, कृष्ण, कबीर, रहीम, नानक, बुद्ध, दादू आदि अवतार ने अवतरित हो मानव कल्यार्थ कार्य किये है। इसी क्रम में त्रेता युग में मार्यदा पुरषोत्तम श्रीराम का उल्लेख हमारे धर्म ग्रंथो में है। कलियुग भले ही हम सभी भी पैदा हुए है,लैकिन मार्यदा पुरुषोत्तम राम की महिमा, चर्चा व लोक प्रियता में जितनी पहले थी उससे कई अधिक इस कलियुग में है इसमें कोई शक शंका व सन्देह तनिक भी नही है। कुछ मायने तो आज राम की महिमा व गुणगान विश्व व्यापी हो गया है। विगत वर्ष जब राम मंदिर के पक्ष मे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले आये है। तब से भारत की भौगोलिक सीमा से बाहर निकल कर विश्वव्यापी हो गए है यु तो मंदिर र्निमार्ण का कार्य ट्रस्ट व कार सेवकों व राम भक्तों द्वारा कई वर्षो से युद्ध स्तर पर चल रहा है। इसी क्रम में एक नई घटनाक्रम घटी है,जिसकी चर्चा इन दिनों देश-विदेशो के सारे समाचार माध्यम में छा रही है। हमारे पड़ोसी देश नेपाल जो कभी भारत का अंहम हिस्सा होता था। राम मंदिर निर्माण में अपना योगदान कर नेपाल- भारत का मैत्रीय का अच्छा उदाहरण पेस किया है। नेपाल के इस कदम ने अन्य देशो के समाने एक पुख्ता सबूत दे दिया है। दोनो शालीग्राम शिला नेपाल से भारत का 7 दिन मे 373 किमी का सफर के बादआखिरकार अयोध्या पहुंच गई हैं। जहाँ गुरुवार सुबह रामसेवक पुरम में 51वैदिक ब्राह्मणों के द्वारा विधिवत शालिग्राम शिलाओं का पूजन किया गया। तदोपरान्त नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री विमलेंद्र निधि और जानकी मंदिर के महंत तपेश्वर दास ने राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के सचिव चंपत राय को शालिग्राम शिलाएं सौंप दीं। आप को बता दे की 6 करोड़ साल पुराने शालीग्राम शीला से भगवान श्रीराम और माँ सीता की भव्य मूर्ति बनेगी, इस संदर्भ में नेपाल के विमलेंद्र निधि के अनुसार जनकपुर में राम व जानकी की जयंती के साथ ही सीताराम विवाह नेपाल के लोग धूमधाम से मनाते हैं। नेपाल से भारत दोनो शीलाओ का आना एक महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हुआ है। यहभगवान की प्ररेणा से हो रहा है। सर्वोच्य न्यायालय दिल्ली के फैसले के बाद मेरे मन में प्ररेणा हूई कि राममंदिर में श्री राम सीता जी की की मूर्ति का निमार्ण शालिग्राम शिला से हो। इस पुण्य कार्य हेतु 40 शिलाओं की पहचान की गई। जिसे वैज्ञानिक तरीके से पहचान के बाद मंदिर र्निमार्ण ट्रस्ट से इस संदर्भ मे पत्राचार किया गया। वाद वे नृपेंद्र मिश्र से भी मिले। दोनों देशों के बीच मे आपसी सहमति बनी व शिला को भारत लाने के लिए मुझे और महंत राम तपेश्वर दास को जिम्मेदारी दी गई थी|जिसे राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट और विश्व हिंदू परिषद एक साल से भारत में लाने का प्रयास कर रही थी। नेपाल के जनकपुर में काली गडक नदी से ये पत्थर निकाले गए थे। जिसे अभिषेक और पूर्ण विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद शालीग्राम शिला को 26 जनवरी 23कोअयोध्या के लिए रवाना किया गया था। आप को बता दे कि इस शालीग्राम शीला 6 करोड वर्ष पुराना है। एक शिला का वजन तकरीबन26 टन है,वहीं दूसरी शिला का वजन तकरीबन14 टन है। नेपाल से डेढ़ सौ लोगों के प्रतिनिधिमंडल के साथ विष्णुंवतारी शालिग्राम देवशिला रथ बुधवार की देर रात रामनगरी अयोध्या पहुंच गई। भगवान विष्णु का स्वरूप मानी जाने वाली शालिग्राम शिला का राम नगरी में भव्य अभिनंदन किया गया। शालिग्राम यात्रा अयोध्या पहुंची तो यहां की फिजाओं में जय श्री राम गूंजने लगा। लोगों ने पुष्प वर्षा के साथ जमकर आतिशबाजी भी की। भगवान राम की नगरी में शिला के स्वागत के लिए राम मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारी काफी देर तक इंतजार करते रहे। आप को बता दे कि इस शालीग्राम शीला को नेपाल से बिहार के रास्ते होते हुए अयोध्या की राम कारसेवक के पास पहुंच चुकी है। हमारे प्राचीन गन्थों में वर्णित रास्तों से त्रेता युग में भगवान श्री राम बिहार होते हुए जनकपुर आये थे,उन्ही रास्तो से इस दिव्य शालीग्राम शीला को राम नगरी अध्योया में लाई गई है। राम भक्त ने दो शिलाओं में से बड़ी शीला को श्री राम मान लिया तो छोटी शीला को माता सीता माना है। इस शालीग्राम की यात्रा के दौरान ऐसा मनोहारी दृश्य ऐसा था कि मानों माँ सीता जी की जनकपुर से विदाई हो रही हो। भक्तजन दुखी इसलिए भी थे कि एक बार जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम मिथिला से गए थे तो वे फिर कभी वापस मिथिला नहीं आए। इस बार राम – जानकी रूपी शालीग्राम शीला भी यहाँ से जा रही हैं तो दोबारा यहाँ वापस कभी नही आएंगे। दरअसल,गुरुवार 2 फरवरी को अयोध्या के श्रीराम कारसेवक पुरम में लाई गई इन दोनों शिलाओं की पूजा किस तरह होगी. इसको लेकर हर किसी के खास राम भक्तों के मन में उत्सुकता जरूर होगी। यह जानने के पहले यह जान लीजिए कि यह दोनों शिलाएं नेपाल सरकार ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को दान स्वरूप दिया है। शिलाओं को हस्तांतरित करने के लिए प्रतिनिधि के तौर पर नेपाल से जानकी धाम के मुख्य महंत और वहां के पूर्व उप प्रधानमंत्री विमलेंद्र निधि भी शिला के साथ आए हैं। अब सवाल उठता है कि क्या नेपाल से लाई गई इन्हीं देव शिलाओं से श्री राम जन्मभूमि मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान होनेवाले रामलला की मूर्ति बनाई जाएगी,तो इसका जवाब सीधे तौर पर अभी मुशकिल लग रहा है। ट्रस्ट के लोगों ने नेपाल के इस र्निणर्य का स्वागत किया है। शालीग्राम शीला से मुर्ति निमार्ण को लेकर एक बैठक होगी। इस बैठक में शास्त्रीय विशेषज्ञ धार्मिक विद्वान और कला की दृष्टि से विशेषज्ञ भी मौजूद होंगे। इसमें यह तय होगा कि इन शिलाओं से गर्भ गृह में प्राण प्रतिष्ठित किए जाने वाले रामलला की मूर्ति तैयार होगी या फिर इनका उपयोग राम दरबार या अन्य कहीं पर किया जाएगा। कामेश्वर चौपाल ने आगे बताया कि इसमें सारे ट्रस्ट के लोगों ने कुछ निर्णय लिया है,कितनी बड़ी मूर्तियां बनेंगी?कैसी बनेगी?स्वरूप क्या होगा?इन बिंदुओं पर विचार हुआ है,फिर से ट्रस्ट के लोग बैठेंगे। शास्त्रीय विशेषज्ञ और कला की दृष्टि से विशेषज्ञ भी जो निर्णय करेंगे वह आगे किया जाएगा। शालिग्राम शिला यात्रा की अगुवाई राम जानकी मंदिर नेपाल के महंत राम पतेश्वर दास,नेपाल सरकार के पूर्व गृहमंत्री विमलेंद्र निधि सहित विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री राजेंद्र सिंह पंकज व राम मंदिर के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल कर रहे थे। अयोध्या पहुंचने पर शालिग्राम शिला पर श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय,ट्रस्टी डॉक्टर अनिल मिश्र,निवर्तमान महापौर ऋषिकेश उपाध्याय सहित अन्य भाजपा नेताओं ने पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। शालिग्राम शिला का अयोध्या में पुजन इसके बाद सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ शालिग्राम यात्रा रामसेवक पुरम कार्यशाला पहुंची। यहां श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरी और महंत दिनेंद्र दास ने शालिग्राम शिला पर पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। शालिग्राम शिला की अयोध्या में पूजन भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच क्रेन के माध्यम से शिला को रामसेवक पुरम में गाड़ी से उतार कर रखा गया। वैदिक आचार्यों के निर्देशन में शालिग्राम की आरती भी उतारी गई। इस शालीग्राम शीला से मुर्ति की निर्माण पर कोई र्निणय नही हो पाया कि एक पक्ष ने अपना विरोध करते हुए कहा कि दो शिलाओ को अभि विलम्ब वापस नेपाल भेजा जाय। तपस्वी छावनी के पीठाधीश्वर महंत परमहंस दास ने कहा है कि शालिग्राम में स्वयं भगवान प्रतिष्ठित हैं,इसलिए उनके ऊपर हथौड़ी छेनी चलाना सही नहीं है अगर शालिग्राम शिला पर छेनी-हथौड़ी चली तो वो अन्न- जल का परित्याग कर देंगे। वहीं अयोध्या हिंदू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अधिवक्ता मनीष पांडे ने कहा कि नेपाल की गंडक नदी से निकाले गए विशालकाय शालिग्राम पत्थर से अगर भगवान रामलला की मूर्ति का निर्माण किया जाता है,तो इससे महाविनाश होना तय है। मंदिर में मूर्ति सोने की अथवा काली राम मंदिर की मूर्ति को ही प्रतिष्ठित किया जाए। महासभा ने आक्रोश प्रकट करते हुए कहा है कि गंडक नदी से निकले शालिग्राम पत्थरों वापस भेज दिया जाए। उन्होंने पौराणिक महत्व पर बताया कि शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वह भगवान को अपने हृदय में धारण करना चाहती थी,छल करने के कारण वृंदा ने भगवान विष्णु को पाषाण हो जाने एवं कीड़ों के द्वारा कुतरे जाने का श्राप दे दिया था। आज उसी श्राप के प्रभाव के कारण भगवान विष्णु पत्थर के रूप में गंडक नदी में विद्यमान हैं। उन्होने कहा कि भगवान विष्णु काली गंडक नदी में जीवित अवस्था में विद्यमान हैंऔर उनका आकार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है। शिलाओं को नेपाल से लेकर अयोध्या आए राम मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख सदस्य कामेश्वर चौपाल के अनुसार ये शिलाएं शालिग्राम ही हैं। इसका परीक्षण करके लाया गया है। इनसे भगवान की मूर्ति बनेगी,यह भी लगभग तय है। मगर यह मूर्ति कहां स्थापित होगी और गर्भगृह की मूर्ति इसी शिला से बनेगी?इसका निर्णय मूर्तिकारों की राय लेने के बाद अंतिम रूप से राम मंदिर ट्रस्ट ही करेगा। उन्होंने कहा कि इस शिला को अयोध्या लाने से पहले नेपाल सरकार ने इसका वैज्ञानिक परीक्षण कराया है। इसकी जानकारी वहां के सरकार ने लिखित रूप से दिया है।

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