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लेख - March 28, 2023

राहुल गांधी की बहाली संभव

-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-

कांग्रेस नेता राहुल गांधी का अध्याय अभी लंबा चलेगा। कई पड़ाव और मोड़ आएंगे। कांग्रेसियों की तल्ख प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। विपक्ष को कुचलना भी लोकतंत्र नहीं है। ‘राहुल गांधी’ नाम समाप्त होने वाला नहीं है, बेशक प्रधानमंत्री मोदी की तुलना में वह कम लोकप्रिय रहे हैं। अचानक राहुल गांधी की लोकसभा सांसदी रद्द कर दी गई। अब वह पूर्व सांसद हैं और छह साल तक चुनाव लडऩे के अयोग्य भी हैं। इतने सालों के बाद उनका राजनीतिक करियर कितना शेष रहता है अथवा क्या आकार ग्रहण करता है, यह बहुत बड़ा सवाल है। बेशक निचली अदालत ने उन्हें दो साल की सजा और 15,000 रुपए जुर्माने की घोषणा की है, लेकिन जमानत के साथ-साथ अपील के लिए भी 30 दिन का समय दिया था।

कमोबेश उस अवधि तक राहुल गांधी की सांसदी रद्द नहीं की जानी चाहिए थी। ऐसा कोई आसमान नहीं टूट रहा था अथवा आफत की स्थिति नहीं थी कि एक निर्वाचित सांसद को बर्खास्त कर लोकसभा के बाहर किया जाता! बेशक राहुल गांधी विपक्षी खेमे के एक नामधारी सांसद-नेता थे। हालांकि उनकी स्वीकृति सर्वमान्य नहीं थी। राहुल के होते हुए भाजपा की लोकसभा सीटें पराजय की परिधि तक पहुंच जातीं या प्रधानमंत्री मोदी 350 सीटें जीतने में कामयाब हो जाते, ऐसी भी कोई संभावना नहीं थी। सर्वोच्च अदालत की संविधान पीठ ने दो साल की सजा का प्रावधान किया था कि ऐसे सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द कर दी जाए, लेकिन सवाल है कि यदि उच्च और सर्वोच्च अदालत के फैसले भिन्न होते हैं और वे दो साल की सजा को कम या खारिज कर देती हैं, तो क्या राहुल गांधी की सांसदी बहाल करनी पड़ेगी? अदालत लोकसभा स्पीकर के संवैधानिक निर्णय के पार भी जा सकती है? सवाल लोकतंत्र का भी है, जिस पर हाल के दिनों में बहस जारी रही है? संदर्भ 2019 में कर्नाटक की चुनाव सभा का है।

राहुल गांधी अपने विवादास्पद बयानों के लिए भी चर्चा में रहे हैं। उन दिनों नीरव मोदी, ललित मोदी आदि आर्थिक घोटालेबाजों और भगोड़ों की भी खूब चर्चा थी। राहुल गांधी का सवाल था कि सभी ‘चोरों’ का सरनेम मोदी ही क्यों होता है? शब्दों में कुछ फर्क हो सकता है, लेकिन भाव यही था। प्रधानमंत्री मोदी के नाम ‘चौकीदार चोर है’ वाला अभियान भी राहुल गांधी की कांग्रेस ने छेड़ रखा था। बेशक राजनीतिक भावार्थ कुछ भी निकाले जाएं, लेकिन मानहानि केस में राहुल को माफी के लिए विवश किया जा सकता था। अदालतों ने पहले भी ऐसा ही किया था। हकीकत यह भी है कि राहुल गांधी ने एक समुदाय और प्रधानमंत्री को निशाना बनाते हुए अपमानित जरूर किया था। अदालती फैसले और लोकसभा सचिवालय के निर्णय के बाद ऐसा आभास होता है कि राहुल गांधी की सांसदी समाप्त कर लोकतंत्र का मर्सिया पढ़ा गया है। इसके फलितार्थ कुछ भी हो सकते हैं।

भाजपा नेतृत्व मुग़ालते में होगी कि राहुल की सांसदी खत्म कर पूरी कांग्रेस पार्टी को ही समाप्त किया जा सकता है। 2019 के आम चुनाव में भी कांग्रेस को करीब 12 करोड़ लोगों ने वोट दिए थे और तीन राज्यों में उसकी सरकारें हैं। अभी कई राज्यों में चुनाव जारी हैं। उनमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कर्नाटक है, जहां कांग्रेस-भाजपा की लगभग प्रत्यक्ष लड़ाई है। किसी भी निर्वाचित सांसद की सदस्यता खारिज करना अंतिम पराकाष्ठा है। यही लोकतंत्र और संविधान का तकाजा है। विपक्ष ने भी प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा तथा स्पीकर के तानाशाही पूर्ण रवैये की भत्र्सना की है। ऐसा करके सत्ता-पक्ष ने लोकतंत्र और विपक्ष की आवाज कुंद करने की कोशिश की है। यदि स्वतंत्र भारत के चुनावी इतिहास पर नजर डाली जाए, तो इससे भी भद्दी, अश्लील, अभद्र गालियां दी गई हैं, लेकिन सदस्यता खत्म नहीं की गई। राजद अध्यक्ष लालू यादव, समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान की सदनीय सदस्यता खत्म की गई है, तो उसके कारण ये थे कि वे आपराधिक और घोटालों के कई मामलों में फंसे थे।

 

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