राहुल गांधी का एजेंडा पृथ्वीराज चौहान ने मध्यप्रदेश में आगे बढ़ाया..
-राकेश अग्निहोत्री-
-: ऐजेंसी/अशोका एक्स्प्रेस :-
राहुल गांधी के एजेंडे को मध्यप्रदेश में आगे बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने मोर्चा संभाला। देश की राजधानी और महत्वपूर्ण शहरों में एक साथ आयोजित 35 प्रेस कॉन्फ्रेंस का हिस्सा बनी भोपाल की प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की गैरमौजूदगी मं प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल खास तौर से मौजूद थे। मुद्दा राहुल गांधी को सजा सुनाए जाने के बाद संसद से सदस्यता जाने वाला वही नया लेकिन पुरानी लाइन पर जो कांग्रेस की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर। प्रेस कॉन्फ्रेंस में पिन पॉइंट सवाल 20 हजार करोड़ किसके। जिसके जवाब के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस और आंदोलन अब भाजपा विरोधियों को इकट्ठा कर सड़क पर लड़ाई।
एक बार फिर निशाने पर मोदी सरकार और उद्योगपति अडानी ही रहे। कॉन्ग्रेस के गुस्से उनके जुझारू और दृढ़ इरादों का एहसास। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का हिस्सा बने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी और मीडिया प्रभारी केके मिश्रा ने जरूर कराया। मध्य प्रदेश कांग्रेस के सेनापति कमलनाथ की गैरमौजूदगी को लेकर कोई ना कोई सवाल ना कोई स्पष्टीकरण और ना ही कोई बात की। आखिर वो कहां है और यहां क्यों नहीं। राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद पहले सत्याग्रह और अब भोपाल में बिना प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत मीडिया प्रभारी केके मिश्रा के गुस्से के इजहार से हुई। सुबह-सुबह भाजपा और संघ पर हमला बोलने के लिए पहचाने जाने वाले के.के मिश्रा के इस बार सलाह मशवरा से आगे चेतावनी और सरकार के 1 साल बाद बनने के दावे के साथ शुरू हुई। चेहरे पर तनाव। सम्मान से समझौता नहीं करने की सोच और सरकार बनने के बाद देख लेने की सख्त चेतावनी।
प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल ने केके मिश्रा के गुस्से का जिक्र कर बड़ी विनम्रता से कांग्रेस के इरादों को जता दिया। अग्रवाल पर जिम्मेदारी है कि वह राहुल की लड़ाई को परिणाम मूलक बनाने के लिए पहले अपने कुनबे को एकजुट और मजबूत साबित करें। केंद्र में मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय में विशेष जिम्मेदारी निभा चुके महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके पृथ्वीराज चौहान ने विस्तार से अपने नेता राहुल गांधी की बात को न सिर्फ आगे बढ़ाया। बल्कि जनतंत्र के महत्व को रेखांकित करने के साथ और दूसरी कड़ियों को जोड़ते हुए पूरे घटनाक्रम का ब्यौरा भी सामने रखा। प्रेस कॉन्फ्रेंस में विस्तार के साथ पृथ्वीराज की पूरी बात और लिखित बयान मीडिया कर्मियों को बांट दिया गया। अडानी के कारोबार और मोदी सरकार के संरक्षण पर फोकस बनाते हुए कई सवाल खड़े कर यह आरोप लगाया कि यह एक बड़ा घोटाला है। इसको उजागर करने के लिए कांग्रेस एक साथ कई मोर्चे पर सदन से लेकर सड़क तक इस लड़ाई को लड़ेगी।
2024 लोकसभा चुनाव में इसे मुद्दा बनाया जाएगा। यानी लड़ाई लंबी और आसान नहीं है लेकिन इसे अंजाम तक पहुंचाया जाएगा। सभी दूसरे भाजपा विरोधी दलों का मिल रहे समर्थन से उत्साहित पृथ्वीराज के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि इस लड़ाई में क्या राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल छोड़कर गए नेताओं की वापसी से कांग्रेस और मजबूत हो सकती है। चाहे फिर वह गुलाम नबी आजाद ही क्यों ना हो। पूरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी की तरह पृथ्वीराज और सुरेश पचौरी ने पूरा फोकस कथित घोटाले पर बनाए रखें। पूर्व केंद्रीय मंत्री जो कांग्रेस की सरकार में रक्षा मंत्रालय से जुड़े रहे के तेवर इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबसे ज्यादा ही तीखे तो अंदाज आक्रमक रहा। सुरेश पचौरी ने नया सवाल खड़ा कर अडानी के कारोबार का नफा नुकसान का पूरा ब्यौरा सामने रख सवाल खड़ा किया।
इससे पहले इतनी मुखरता से केंद्र सरकार खासतौर से मोदी और अदानी के खिलाफ प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ तो कभी नहीं बोले। पिछले दिनों सड़क पर विरोध प्रदर्शन के दौरान भी कांग्रेस के किसी जिम्मेदार नेता ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मार्फत इतना आक्रमक रुख अख्तियार नहीं किया। सुरेश पचौरी के अलावा दिग्विजय सिंह जरूर राहुल गांधी की लाइन को आगे बढ़ाते रहें। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके पचौरी ने मुखौटा की आड़ में व्यंग कर मोडानी की मित्रता पर सवाल खड़ा किया। प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल और प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए पृथ्वीराज चौहान की तुलना में सुरेश पचौरी की आक्रमकता गौर करने लायक थी। जिन्होंने अडानी के कई देशों में पूंजी निवेश का ब्यौरा सामने रखा। इससे पहले मीडिया प्रभारी केके मिश्रा ने पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान के प्रोटोकाल का हवाला देकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा बुलाई गई आनन-फानन प्रेस कॉन्फ्रेंस पर सवाल खड़ा किया।
उन्होंने दावा किया कि एक साल बाद कांग्रेस की सरकार लौटने के बाद नए सिरे से पूर्व मुख्यमंत्रियों के प्रोटोकाल पर विचार किया जाएगा। कुल मिलाकर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से कांग्रेस ने यह संदेश देने की कोशिश की कि सत्ता वापसी को लेकर वह पूरी तरह से आशान्वित हैं और अपने नेता राहुल गांधी की अपेक्षाओं पर वह हर हाल में खरा उतरकर दिखाएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि आपदा में अवसर खोजने वाली भाजपा की लाइन पर ही आगे बढ़ते हुए कांग्रेस इस मौके को पूरा भुनाना चाहती है। उसे मालूम है केंद्र की लड़ाई भले ही 2024 को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से शुरू की गई है… लेकिन प्रदेश कांग्रेस की नजर उससे पहले होने वाले 2023 विधानसभा चुनाव पर टिक गई है। राहुल गांधी के साथ संघर्ष के रास्ते आगे बढ़ने को लेकर गंभीर हो चली प्रदेश कांग्रेस को लगता है कि सहानुभूति की लहर न सिर्फ राहुल गांधी और उसके राष्ट्रीय नेतृत्व को बल्कि मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस को ताकत दे सकती है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद कॉन्ग्रेस हाथ से जोड़ो हाथ अभियान को असरदार साबित नहीं कर पाई।
अलबत्ता कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व की गाइडलाइन और कार्यक्रम को निर्धारित अवधि और समय सीमा में आगे बढ़ाने के लिए प्रदेश नेतृत्व अब मजबूर है। किसी बड़े जिम्मेदार नेता दूसरे दिग्गज और क्षत्रपों की गैरमौजूदगी की बिना परवाह किए हुए प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल इसे आगे बढ़ा रहे हैं। पार्टी के अंदर यह सवाल जरूर उठने लगा है कि जब राहुल गांधी के नाम पर सब एक साथ नजर नहीं आ सकते तो फिर विपरीत परिस्थितियों में खून किस के काम आएगा। यह मौका है 15 महीने की सरकार गवाँ चुकी कांग्रेस के लिए जो सत्ता में वापसी का दावा करने लगी है। चोट खाई कॉन्ग्रेस मीडिया का बेहतर उपयोग भी करना चाहती। लेकिन पार्टी के कुछ जिम्मेदार नेताओं ने व्यक्तिगत राग द्वेष के चलते मीडिया को भाजपा और कांग्रेस के बीच विभाजित कर रखा है। आए दिन उनके नेताओं की पत्रकारों से झड़प सुनने और देखने को मिलती है। कांग्रेस के कार्यकर्ता खुद यह कहने लगे हैं कि नेतृत्व को अहंकार छोड़कर समन्वय के साथ आगे बढ़ना चाहिए और ना सिर्फ मीडिया से संबंध सुधारना होंगे बल्कि प्रेस कॉन्फ्रेंस और ट्विटर से आगे चौक चौराहों गली मोहल्ले तक होगा। प्रेस कॉन्फ्रेंस पर मौजूद प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल जो लगातार कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद कर रहे। अब प्रदेश अध्यक्ष की गैरमौजूदगी में विरोध प्रदर्शन की कमान संभालने को मजबूर है।
जो प्रदेश के नेताओं पर बहुत बारीक नजर रखे हुए हैं और पूरी रिपोर्ट हाईकमान तक पहुंचा रहे। मध्य प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के समर्थक नुमाइंदे भी इस प्रेस कॉन्फ्रेंस पर बारीक नजर रखे हुए थे। यह कहना गलत नहीं होगा कमलनाथ की गैरमौजूदगी में भी पदाधिकारियों ही नहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश न सिर्फ सिर्फ बरकरार है। बल्कि करो या मरो की स्थिति में खुद को लाकर खड़ा कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के नेताओं में समन्वय स्थापित हो चुका इसकी गारंटी कोई नहीं लेने को तैयार और ना ही ऐसा कोई संदेश किसी प्लेटफार्म और फार्मूले चाहे फिर आंदोलन हो या प्रेस कांफ्रेंस के जरिए अभी तक नहीं जा पाया है। क्योंकि कई वरिष्ठ अनुभवी नेताओं की अनदेखी साफ देखी जा सकती है तो जीतू पटवारी जैसे युवा और जुझारू नेताओं को उलझा दिया गया है। नेताओं के समर्थक जरूर दायर तोड़कर राहुल गांधी के साथ खड़े दिखना चाहते हैं।
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